नैतिक कहानियाँ (Moral Stories in Hindi) बच्चों और बड़ों के लिए प्रेरणा का स्रोत होती हैं। ये कहानियाँ हमें जीवन के महत्वपूर्ण मूल्यों, नैतिकता और अच्छे संस्कारों की सीख देती हैं। इस ब्लॉग में हम कुछ बेहतरीन हिंदी में नैतिक कहानियाँ साझा करेंगे, जो बच्चों को सही और गलत में अंतर समझाने में मदद करेंगी।
1.ईमानदार लकड़हारा-moral stories in hindi
एक समय की बात है, एक गाँव में रामू नाम का एक ईमानदार लकड़हारा रहता था। वह हर दिन जंगल में जाता, लकड़ियाँ काटता और उन्हें बाजार में बेचकर अपनी जीविका चलाता था। रामू ईमानदार और मेहनती था, लेकिन बहुत गरीब था।
एक दिन, जब वह नदी किनारे एक पेड़ काट रहा था, अचानक उसका कुल्हाड़ा हाथ से फिसलकर गहरी नदी में गिर गया। रामू घबरा गया क्योंकि वही कुल्हाड़ा उसकी रोजी-रोटी का एकमात्र साधन था। वह नदी के किनारे बैठकर दुखी होकर रोने लगा।
रामू की सच्चाई और ईमानदारी को परखने के लिए नदी में रहने वाले जलदेव प्रकट हुए। उन्होंने रामू से पूछा, "बेटा, तुम क्यों रो रहे हो?"
रामू ने हाथ जोड़कर जवाब दिया, "मेरा कुल्हाड़ा नदी में गिर गया है। मैं अब अपने परिवार का पेट कैसे भरूँगा?"
जलदेव मुस्कुराए और पानी में डुबकी लगाकर सोने का एक चमचमाता कुल्हाड़ा निकाला। उन्होंने पूछा, "क्या यह तुम्हारा कुल्हाड़ा है?"
रामू ने तुरंत मना कर दिया, "नहीं देवता, यह मेरा नहीं है।"
जलदेव ने फिर से नदी में गोता लगाया और चाँदी का कुल्हाड़ा निकाला। "क्या यह तुम्हारा कुल्हाड़ा है?"
रामू ने फिर मना कर दिया। आखिरकार, जलदेव ने लोहे का कुल्हाड़ा निकाला। रामू खुशी से बोला, "हाँ, यही मेरा कुल्हाड़ा है!"
रामू की ईमानदारी से प्रभावित होकर जलदेव ने उसे तीनों कुल्हाड़े इनाम में दे दिए।
इस घटना के बाद, रामू और भी खुशहाल जीवन जीने लगा। उसकी ईमानदारी का सबको पता चला, और लोग उसकी इज्जत करने लगे।
सीख:
ईमानदारी हमेशा इनाम लाती है, चाहे परिस्थिति कितनी भी कठिन क्यों न हो।
2.लालची किसान और सोने के अंडे-best moral stories in hindi
एक गाँव में रामू नाम का एक गरीब किसान रहता था। उसके पास थोड़ी सी ज़मीन थी, जिससे बड़ी मुश्किल से गुज़ारा चलता
था। एक दिन, उसे एक बाज़ार में एक अनोखी मुर्गी मिली। दुकानदार ने बताया कि यह कोई साधारण मुर्गी नहीं,हीं बल्कि यह हर
दिन एक सोने का अंडा देती है। यह सुनकर रामू को लगा कि उसकी गरीबी अब खत्म हो सकती है। उसने तुरंत वह मुर्गी
खरीद ली और घर ले आया।
अगली सुबह जब रामू ने देखा, तो सच में मुर्गी ने एक चमकता हुआ सोने का अंडा दिया था! वह खुशी से झूमझू उठा और उस
अंडे को बेचकर काफी पैसे कमा लिए। अब हर दिन उसे एक सोने का अंडा मिलता और उसकी ज़िंदगी आरामदायक होने
लगी। लेकिन जल्द ही उसकी लालच बढ़ने लगी।
रामू को लगा कि अगर वह रोज़ सिर्फ एक अंडे पर निर्भर रहेगा, तो अमीर बनने में बहुत समय लगेगा। उसने सोचा, "अगर यह
मुर्गी हर दिन एक अंडा दे सकती है, तो इसके पेट में और भी बहुत सारे अंडे होंगेहों गे! क्यों न इसे काटकर एक ही बार में सारे अंडे
निकाल लूं?"
बस, लालच में आकर उसने बिना सोचे-समझे मुर्गी को मार डाला। लेकिन जब उसने उसका पेट चीरकर देखा, तो अंदर कुछ
भी नहीं था। ना सोने के अंडे और ना ही मुर्गी। अब उसकी अमीरी भी खत्म हो गई और वह फिर से गरीब हो गया।
सीख:
लालच बुरी बला है। जो हमारे पास है, उसकी कद्र करनी चाहिए, नहीं तो सबकुछ खोना पड़ सकता है।
3.शेर और चतुर खरगोश-very short moral stories
बहुत समय पहले की बात है, एक घने जंगल में एक क्रूर शेर रहता था। वह जंगल के सभी जानवरों को मारकर खा जाता था।
धीरे-धीरे जंगल के सभी जानवर डर के मारे परेशान रहने लगे। उन्होंनेन्हों मिलकर एक उपाय निकाला।
वे शेर के पास गए और बोले, "महाराज, यदि आप हमें यूँ ही मारते रहेंगे, तो जल्द ही जंगल में कोई नहीं बचेगा। इसलिए हम
रोज आपके भोजन के लिए एक जानवर भेज दिया करेंगे, इससे आपको शिकार भी नहीं करना पड़ेगा।"
शेर को यह बात पसंद आई और उसने इसे मान लिया। अब रोज एक जानवर अपनी बारी आने पर शेर के पास जाता और शेर
उसे खा जाता।
एक दिन खरगोश की बारी आई। खरगोश बहुत होशियार था। उसने शेर को मारने की योजना बनाई। वह धीरे-धीरे शेर के
पास पहुँचा।
गुस्से से भरा शेर दहाड़ते हुए बोला, "तुम इतनी देर से क्यों आए?"
चतुर खरगोश बोला, "महाराज, मैं जल्दी ही आ रहा था, लेकिन रास्ते में एक और शेर ने मुझे रोक लिया। उसने कहा कि यह
जंगल अब उसका है और वह आपको मार देगा।"
शेर को यह सुनकर बहुत गुस्सा आया। उसने कहा, "मुझे उस शेर का ठिकाना बताओ!"
खरगोश शेर को एक गहरे कुएँ के पास ले गया और कहा, "महाराज, यही वह स्थान है जहाँ वह शेर रहता है।"
शेर ने कुएँ में झाँका और उसे अपनी ही परछाईं दिखी। उसने सोचा कि कोई और शेर है और गुस्से में दहाड़ते हुए कुएँ में कूद
पड़ा।
शेर कुएँ में गिरकर डूब गया, और इस तरह जंगल के सभी जानवर खरगोश की चतुराई से बच गए।
शिक्षा:
बुद्धि बल से भी बड़ी होती है। परिस्थिति चाहे कितनी भी कठिन क्यों न हो, धैर्य और चतुराई से हम हर समस्या का हल निकाल
सकते हैं।
4.मधुर वचनों की शक्ति
एक गाँव में रमेश नाम का एक किसान रहता था। वह मेहनती तो था, लेकिन उसका स्वभाव बहुत रूखा था। वह जब भी किसी से बात करता, कठोर शब्दों का प्रयोग करता, जिससे गाँव के लोग उससे दूर रहने लगे।
एक दिन, उसकी फसल को कीड़ों ने नुकसान पहुँचा दिया। परेशान होकर वह गाँव के बड़े व्यापारी मोहन के पास मदद माँगने गया। लेकिन क्योंकि वह हमेशा कड़वे शब्द बोलता था, मोहन ने उसकी मदद करने से मना कर दिया। दुखी होकर रमेश अपने घर लौट आया।
रास्ते में उसकी मुलाकात एक साधु से हुई। साधु ने उसकी चिंता का कारण पूछा। रमेश ने अपनी परेशानी बताई। साधु मुस्कुराकर बोले, "बेटा, जैसे शहद से मधुमक्खियाँ आकर्षित होती हैं, वैसे ही मीठे शब्दों से लोग आपकी ओर आकर्षित होते हैं। अगर तुम मधुर वाणी में बात करोगे, तो लोग खुद-ब-खुद तुम्हारी मदद करेंगे।"
रमेश ने साधु की बात को गंभीरता से लिया और अपनी वाणी को बदलने का निर्णय किया। अगले दिन, वह मोहन के पास गया और विनम्रता से मदद माँगी। मोहन उसकी बदली हुई वाणी से प्रभावित हुआ और तुरंत उसकी मदद करने के लिए तैयार हो गया। धीरे-धीरे गाँव के बाकी लोग भी रमेश के अच्छे व्यवहार से प्रभावित हुए और उसके मित्र बन गए।
समय बीतने के साथ, रमेश की फसल अच्छी होने लगी और उसकी कठिनाइयाँ दूर हो गईं। अब वह समझ गया था कि मधुर वचन न केवल दूसरों का दिल जीतते हैं, बल्कि जीवन में सफलता भी दिलाते हैं।
सीख: मधुर वचनों की शक्ति अमूल्य होती है। यह न केवल दूसरों का दिल जीतती है बल्कि सफलता की राह भी आसान बनाती है।
5.स्वार्थी दानव का सबक
बहुत समय पहले की बात है, एक घने जंगल में एक स्वार्थी दानव रहता था। वह बहुत शक्तिशाली था और जंगल के बीचों-बीच एक सुंदर बगीचे का मालिक था। बगीचे में तरह-तरह के फूल खिले रहते, मीठे फलदार पेड़ थे और एक झरना भी बहता था। लेकिन दानव ने उस बगीचे में किसी को आने की अनुमति नहीं दी थी।
जंगल के छोटे-छोटे बच्चे जब कभी खेलते-खेलते उस बगीचे में घुस जाते, तो दानव उन्हें डांटकर भगा देता। उसने बगीचे के चारों ओर ऊँची दीवार बनवा दी और एक बड़ा ताला भी लगवा दिया ताकि कोई अंदर न आ सके।
कुछ समय बाद, बगीचे में अजीब-सा सन्नाटा छा गया। पेड़ मुरझाने लगे, फूल खिलना बंद हो गए और झरना भी धीरे-धीरे सूखने लगा। हर तरफ उदासी छा गई, क्योंकि वहाँ अब बच्चों की हंसी और खेल-कूद नहीं थी।
एक दिन, दानव ने देखा कि उसके बगीचे में हमेशा ठंड का मौसम रहता है। बाकी जंगल में बसंत आ चुका था, लेकिन उसके बगीचे में पेड़ ठिठुर रहे थे और फूल झड़ चुके थे। वह बहुत परेशान हो गया।
तभी उसने देखा कि एक छोटा बच्चा दीवार के छोटे से छेद से अंदर घुस आया और उसने ज़मीन पर गिरी सूखी पत्तियों को हटाकर एक पौधा लगाया। देखते ही देखते, पौधा हरा हो गया और उसमें कली आ गई। यह देखकर दानव को अपनी गलती का एहसास हुआ।
उसने तुरंत बगीचे का ताला खोल दिया और बच्चों को खेलने की अनुमति दे दी। जैसे ही बच्चे बगीचे में आए, पेड़ फिर से हरे-भरे हो गए, फूल खिलने लगे और झरना भी बहने लगा।
दानव ने सीखा कि खुशियाँ बाँटने से ही बढ़ती हैं, और स्वार्थ हमेशा अकेलापन ही लाता है।
6.चींटी और आलसी टिड्डा
गर्मियों के दिन थे। धूप तेज थी, लेकिन चींटी अपने काम में लगी हुई थी। वह दिन-रात मेहनत कर रही थी, अन्न के दाने इकट्ठे कर रही थी ताकि सर्दियों में कोई परेशानी न हो। दूसरी ओर, पास ही एक टिड्डा बैठा बंसी बजा रहा था। वह मस्ती में झूम रहा था और चींटी को देखकर हंसता था।
"अरे चींटी! इतनी मेहनत क्यों कर रही हो? आओ, मेरे साथ बैठो और गाना गाओ!" टिड्डे ने कहा।
चींटी मुस्कुराई और बोली, "मैं सर्दियों के लिए भोजन जमा कर रही हूँ। जब ठंड आएगी, तब मुझे भूखा नहीं रहना पड़ेगा।"
टिड्डा हंसते हुए बोला, "अभी तो बहुत समय है! क्यों बेकार मेहनत कर रही हो?"
चींटी ने कोई जवाब नहीं दिया और अपना काम करती रही। टिड्डा मस्ती में गाता-बजाता रहा, बिना यह सोचे कि आगे क्या होगा।
समय बीतता गया, और सर्दियां आ गईं। चारों ओर बर्फ पड़ने लगी, हरियाली खत्म हो गई। टिड्डे को अब खाने के लिए कुछ नहीं मिल रहा था। ठंड से काँपता हुआ वह चींटी के घर पहुँचा और कहा, "मुझे खाने के लिए कुछ दे दो, मैं भूखा हूँ।"
चींटी बोली, "जब मैं मेहनत कर रही थी, तब तुम मस्ती कर रहे थे। अगर तुमने भी मेहनत की होती, तो आज यह दिन नहीं देखना पड़ता।"
टिड्डे को अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने तय किया कि अगली बार वह भी मेहनत करेगा।
सीख: समय रहते मेहनत करने से भविष्य सुरक्षित रहता है। आलस्य से केवल पछतावा मिलता है।
7.बाँटने का जादू
एक गाँव में रमेश नाम का एक किसान रहता था। वह बहुत मेहनती था, लेकिन उसके पास इतना धन नहीं था कि वह अपने परिवार को ठीक से पाल सके। एक दिन, उसने अपने खेत में सोने के सिक्कों से भरा एक घड़ा खोदकर निकाला। रमेश बहुत खुश हुआ और उसने सोचा कि अब उसकी गरीबी दूर हो जाएगी।
लेकिन जैसे ही उसने घड़े को उठाया, एक दिव्य आवाज़ सुनाई दी, "यह धन तुम्हारा है, लेकिन इसे बाँटने में ही इसकी सच्ची कीमत है।" रमेश को यह बात समझ में आ गई। उसने सोचा कि अगर वह इस धन को केवल अपने लिए इस्तेमाल करेगा, तो यह जल्द ही खत्म हो जाएगा। लेकिन अगर वह इसे बाँटेगा, तो यह सभी के लिए आशीर्वाद बन जाएगा।
उसने गाँव के गरीबों को बुलाया और उन्हें सोने के सिक्के बाँटने शुरू कर दिए। कुछ लोगों को उसने खेत खरीदने के लिए पैसे दिए, तो कुछ को अपने बच्चों की पढ़ाई के लिए। धीरे-धीरे, पूरा गाँव खुशहाल हो गया। लोगों ने मिलकर काम करना शुरू किया और गाँव की तरक्की होने लगी।
कुछ सालों बाद, रमेश का गाँव समृद्ध हो गया। लोगों ने उसे धन्यवाद दिया और कहा, "तुम्हारे बाँटने के जादू ने हम सभी की जिंदगी बदल दी।" रमेश मुस्कुराया और बोला, "सच्चा धन वही है जो बाँटने से बढ़ता है।"
सीख:जब हम दूसरों के साथ अपनी खुशियाँ और संसाधन बाँटते हैं, तो वह हमारे जीवन में और भी अधिक खुशियाँ लाता है। बाँटने में ही असली जादू छुपा होता है।
8.मूर्ख गधा और नमक की बोरी
एक गाँव में एक व्यापारी रहता था, जो नमक बेचने का काम करता था। उसके पास एक गधा था, जो हर दिन नमक की बोरियाँ लादकर बाजार तक ले जाता था। एक दिन, नदी पार करते समय गधा फिसल गया और पानी में गिर पड़ा। नमक की बोरी भीग गई, और नमक पानी में घुल गया। बोरी का वजन हल्का हो गया, और गधे को बोरी ढोने में आसानी हो गई।
गधा बहुत खुश हुआ। उसने सोचा, "अगर मैं हर बार पानी में गिर जाऊँ, तो मेरा बोझ हल्का हो जाएगा।" अगले दिन, जब व्यापारी ने फिर से नमक की बोरी गधे पर लादी, तो गधा जानबूझकर नदी में कूद गया। नमक फिर से घुल गया, और बोरी हल्की हो गई। व्यापारी को समझ में आ गया कि गधा चालाकी कर रहा है।
व्यापारी ने सोचा, "इस गधे को सबक सिखाना होगा।" अगले दिन, उसने नमक की जगह रुई की बोरियाँ गधे पर लाद दीं। गधा फिर से नदी में कूद गया, लेकिन इस बार रुई ने पानी सोख लिया, और बोरी का वजन दोगुना हो गया। गधे को बोझ ढोने में बहुत मुश्किल हुई। उस दिन के बाद, गधे ने कभी जानबूझकर पानी में कूदने की गलती नहीं की।
सीख:
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि चालाकी और आलस से काम लेना हमेशा फायदेमंद नहीं होता। ईमानदारी और मेहनत से काम करना ही सफलता की कुंजी है।
9. दो मित्र और भालू
एक घने जंगल में राहुल और अरुण नाम के दो मित्र रहते थे। वे हमेशा साथ में घूमते और मस्ती करते थे। एक दिन, उन्होंने जंगल के बीचों-बीच एक नई जगह खोजने का फैसला किया। रास्ते में, राहुल ने कहा, "अरुण, हमें सावधान रहना चाहिए। यह जंगल खतरनाक हो सकता है।" लेकिन अरुण हंसते हुए बोला, "डर किस बात का? हम साथ हैं ना!"
थोड़ी देर बाद, अचानक उन्हें एक बड़े भालू का सामना करना पड़ा। भालू को देखते ही अरुण डर के मारे वहीं पेड़ पर चढ़ गया। राहुल ने भागने की कोशिश की, लेकिन भालू उसके पीछे भागने लगा। तभी राहुल को याद आया कि भालू मृत शरीर को नहीं खाते। वह जमीन पर लेट गया और सांस रोककर मरने का नाटक करने लगा। भालू ने उसे सूंघा, लेकिन जब उसे लगा कि राहुल मर चुका है, तो वह चला गया।
जब भालू चला गया, तो अरुण पेड़ से नीचे उतरा और राहुल से पूछा, "भालू ने तुम्हारे कान में क्या कहा?" राहुल ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, "उसने कहा कि जो मित्र मुसीबत में साथ छोड़ दे, उस पर कभी भरोसा नहीं करना चाहिए।"
सीख: सच्चा मित्र वही होता है जो मुसीबत में आपका साथ दे। ऐसे लोगों से सावधान रहें जो केवल खुशियों के साथी बनते हैं और मुश्किल समय में साथ छोड़ देते हैं।
10.धनी और निर्धन भिखारी
एक छोटे से गाँव में दो भिखारी रहते थे। एक भिखारी बहुत धनी था, उसके पास सोने-चाँदी के सिक्के, अच्छे कपड़े और एक छोटा सा घर था। दूसरा भिखारी बिल्कुल निर्धन था, उसके पास फटे हुए कपड़े और एक टूटी हुई झोपड़ी थी। धनी भिखारी हमेशा अपने धन पर गर्व करता और निर्धन भिखारी को नीचा दिखाता। वह कहता, "तुम्हारे पास कुछ नहीं है, इसलिए तुम हमेशा दुखी रहोगे।"
एक दिन, गाँव में एक संत आए। उन्होंने दोनों भिखारियों को देखा और उनके पास जाकर बोले, "तुम दोनों को मैं एक-एक वरदान दूंगा।" धनी भिखारी ने तुरंत कहा, "मुझे और धन चाहिए ताकि मैं और अमीर बन सकूं।" संत ने उसे और सोने के सिक्के दे दिए। निर्धन भिखारी ने विनम्रता से कहा, "मुझे केवल इतना चाहिए कि मैं हमेशा खुश रहूं और दूसरों की मदद कर सकूं।" संत ने मुस्कुराते हुए उसे आशीर्वाद दिया।
कुछ समय बाद, धनी भिखारी अपने धन को लेकर इतना व्यस्त हो गया कि उसे खुशी का एहसास ही नहीं रहा। वह हमेशा चिंता में डूबा रहता कि कहीं उसका धन चोरी न हो जाए। दूसरी ओर, निर्धन भिखारी हमेशा खुश रहता और गाँव वालों की मदद करता। उसकी मुस्कान और दयालुता ने उसे सबका चहेता बना दिया।
एक दिन, धनी भिखारी ने निर्धन भिखारी से पूछा, "तुम्हारे पास कुछ भी नहीं है, फिर भी तुम इतने खुश कैसे रहते हो?" निर्धन भिखारी ने मुस्कुराते हुए कहा, "खुशी धन में नहीं, बल्कि दिल में होती है। जब तुम दूसरों की मदद करते हो और संतोष रखते हो, तो खुशी अपने आप तुम्हारे पास आ जाती है।"
धनी भिखारी को उस दिन एहसास हुआ कि असली धन वह नहीं है जो हाथ में होता है, बल्कि वह है जो दिल में होता है। उसने अपना धन गरीबों में बाँटना शुरू कर दिया और खुशी पाई।
सीख: खुशी और संतोष ही जीवन का असली धन है। धन से ज्यादा महत्वपूर्ण है दिल की गरीबी को दूर करना और दूसरों की मदद करना।
11. बुद्धिमान पुराना उल्लू
एक घने जंगल में एक बहुत बड़ा पेड़ था, जिस पर एक बूढ़ा उल्लू रहता था। वह उल्लू अपनी बुद्धिमानी के लिए पूरे जंगल में मशहूर था। जानवरों के बीच कोई भी समस्या होती, वे सीधे उसी के पास पहुँचते और उल्लू उन्हें सही रास्ता दिखाता। एक दिन, जंगल में एक नन्हा खरगोश आया, जो बहुत परेशान लग रहा था। वह उल्लू के पास गया और बोला, "महाराज, मैं बहुत छोटा और कमजोर हूँ। हर कोई मुझे डराता है और मेरा खाना छीन लेता है। मैं क्या करूँ?"
उल्लू ने गहरी साँस ली और अपनी आँखें बंद कर लीं, जैसे कुछ सोच रहा हो। फिर वह बोला, "तुम्हारा छोटा आकार तुम्हारी कमजोरी नहीं, तुम्हारी ताकत है। तुम छोटे हो, इसलिए तुम चुपके से कहीं भी जा सकते हो और अपने लिए सुरक्षित जगह ढूंढ सकते हो। तुम्हारी चालाकी और फुर्ती तुम्हें बड़े जानवरों से बचा सकती है।"
खरगोश ने उल्लू की बात मानी और अपनी चालाकी का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। वह जल्दी ही जंगल के नियमों को समझ गया और अपने लिए सुरक्षित रास्ते ढूंढने लगा। धीरे-धीरे, उसने अपनी समस्याओं को हल करना सीख लिया और जंगल में अपनी जगह बना ली।
उल्लू ने खरगोश को समझाया कि हर किसी की अपनी खूबियाँ होती हैं। जरूरत है तो बस उन्हें पहचानने और उनका सही इस्तेमाल करने की। यही बुद्धिमानी है।
सीख: हर किसी में कोई न कोई खासियत होती है। बस उसे पहचानो और उसका सही इस्तेमाल करो। यही सच्ची बुद्धिमानी है।
12.कछुए और खरगोश की दौड़
एक बार की बात है, एक घने जंगल में एक खरगोश और एक कछुआ रहते थे। खरगोश बहुत तेज़ दौड़ने वाला था और उसे इस बात पर बड़ा घमंड था। वह हमेशा कछुए का मज़ाक उड़ाता और कहता, "तुम इतने धीमे हो कि तुम्हें चलते हुए देखकर पेड़ भी थक जाते होंगे!" कछुआ चुपचाप सब सहन करता, लेकिन एक दिन उसने खरगोश को चुनौती दे दी।
खरगोश हँसते हुए बोला, "तुम मेरे साथ दौड़ोगे? यह तो मज़ाक बन जाएगा!" कछुआ ने विनम्रता से कहा, "दौड़ से ही पता चलेगा कि जीत किसकी होती है।" जंगल के सभी जानवर इकट्ठा हो गए और दौड़ शुरू हुई।
खरगोश तेज़ी से दौड़ा और कछुआ को पीछे छोड़ दिया। रास्ते में खरगोश ने सोचा, "कछुआ तो बहुत पीछे है, मैं थोड़ा आराम कर लेता हूँ।" वह एक पेड़ के नीचे लेट गया और सो गया।
दूसरी ओर, कछुआ धीरे-धीरे लेकिन लगातार चलता रहा। उसने हार नहीं मानी और धैर्य से अपनी मंजिल की ओर बढ़ता गया। जब खरगोश की नींद खुली, तो उसने देखा कि कछुआ लक्ष्य के बहुत करीब है। वह तेज़ी से दौड़ा, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। कछुआ दौड़ जीत चुका था।
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि अहंकार और आलस्य हमें पीछे धकेल सकते हैं, जबकि मेहनत और लगन से हम किसी भी लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं। धीरे चलो, लेकिन निरंतर बढ़ते रहो, सफलता ज़रूर मिलेगी।
13.किसान और उसके आलसी बेटे
एक बार की बात है, एक बूढ़ा किसान था जो बहुत मेहनती था। वह अपने खेत में दिन-रात काम करता और अच्छी फसल उगाता। उसका एक बेटा था, जो बहुत आलसी था। वह सारा दिन सोता रहता और काम से जी चुराता। किसान को चिंता होती कि उसके बाद उसका बेटा खेत का काम कैसे संभालेगा।
एक दिन किसान बीमार पड़ गया और उसे लगा कि अब उसके पास ज्यादा समय नहीं बचा है। उसने अपने बेटे को बुलाया और कहा, "बेटा, मैंने इस खेत में बहुत मेहनत की है। यहाँ जमीन के नीचे एक खजाना छुपा है। जब मैं नहीं रहूँगा, तुम इसे खोदकर निकाल लेना।" यह कहकर किसान चल बसा।
किसान की मृत्यु के बाद, बेटे को खजाने की याद आई। वह आलसी था, लेकिन खजाने की लालच में उसने खेत खोदना शुरू कर दिया। दिन-रात मेहनत करने के बाद भी उसे खजाना नहीं मिला। निराश होकर उसने फसल बोने का फैसला किया। समय बीतता गया और फसल तैयार हो गई। जब उसने फसल काटी, तो उसे एहसास हुआ कि उसकी मेहनत से उसने इतनी अच्छी फसल उगाई है, जो उसके लिए खजाने से कम नहीं थी।
उस दिन उसे समझ आया कि उसके पिता ने जो खजाने की बात कही थी, वह कोई धन नहीं, बल्कि मेहनत का महत्व था। उसने सीख लिया कि मेहनत ही असली खजाना है।
सीख: मेहनत का कोई विकल्प नहीं होता। आलस्य छोड़कर मेहनत करने वाले को ही सफलता मिलती है।
14.राजा का सुनहरा स्पर्श
एक समय की बात है, एक धनी और शक्तिशाली राजा था। उसके पास सोने-चाँदी के खजाने, विशाल महल और अनगिनत सेवक थे। लेकिन उसके मन में एक अजीब सी इच्छा थी। वह चाहता था कि जो भी वह छुए, वह सोने में बदल जाए। एक दिन, एक तपस्वी ने उसकी यह इच्छा पूरी कर दी। राजा खुशी से झूम उठा।
पहले दिन, राजा ने महल के बगीचे में एक फूल को छुआ। फूल सोने का हो गया। उसने एक पत्थर को छुआ, वह भी सोने का बन गया। राजा को लगा कि उसकी जिंदगी और भी खूबसूरत हो गई है। लेकिन जल्दी ही उसे एहसास हुआ कि यह वरदान एक अभिशाप बन गया है।
जब वह खाने बैठा, तो उसकी थाली का हर निवाला सोने में बदल गया। पानी का घूंट भी सोने की ठोस डली बन गया। राजा भूखा-प्यासा रह गया। उसकी बेटी जब उसे गले लगाने आई, तो वह भी सोने की मूर्ति बन गई। राजा की आँखों से आँसू बह निकले। उसे समझ आया कि धन-दौलत से ज्यादा महत्वपूर्ण प्यार और संबंध हैं।
राजा ने तपस्वी से वरदान वापस लेने की प्रार्थना की। तपस्वी ने उसे समझाया, "सच्चा सुख भौतिक वस्तुओं में नहीं, बल्कि मानवीय संबंधों और संतोष में होता है।" राजा ने सबक सीखा और फिर कभी लालच नहीं किया।
सीख: धन और सोना जीवन का उद्देश्य नहीं है। असली खुशी प्रेम, संबंध और संतोष में छिपी होती है।
15.चतुर बंदर और मगरमच्छ
एक घने जंगल में एक चतुर बंदर रहता था। वह हमेशा पेड़ों पर झूलता और मीठे-मीठे फल खाता। उसी जंगल में एक नदी बहती थी, जिसमें एक मगरमच्छ रहता था। मगरमच्छ और बंदर की दोस्ती हो गई। बंदर रोज़ मगरमच्छ को पेड़ से फल तोड़कर देता, और मगरमच्छ उसे नदी के किनारे बैठकर खाता।
एक दिन मगरमच्छ ने बंदर से कहा, "भाई, तुम्हारे फल बहुत स्वादिष्ट होते हैं। क्या तुम मेरी पत्नी के लिए भी कुछ फल ला सकते हो?" बंदर मुस्कुराया और कहा, "ज़रूर! मैं कल तुम्हारे लिए और फल लेकर आऊंगा।"
अगले दिन बंदर ने मगरमच्छ को ढेर सारे फल दिए। मगरमच्छ ने फल लेकर अपनी पत्नी को दिए। पत्नी ने फल खाकर कहा, "ये फल तो बहुत मीठे हैं! अगर बंदर इतने मीठे फल खाता है, तो उसका दिल भी बहुत मीठा होगा। मैं उसका दिल खाना चाहती हूँ।"
मगरमच्छ यह सुनकर घबरा गया, लेकिन पत्नी की ज़िद के आगे उसने हार मान ली। अगले दिन उसने बंदर से कहा, "भाई, मेरी पत्नी तुमसे मिलना चाहती है। क्या तुम मेरे साथ चलोगे?" बंदर खुशी-खुशी मगरमच्छ की पीठ पर बैठ गया।
नदी के बीच में पहुँचकर मगरमच्छ ने सच्चाई बताई, "माफ़ करना दोस्त, लेकिन मेरी पत्नी तुम्हारा दिल खाना चाहती है।" बंदर चतुर था, उसने तुरंत उपाय सोचा और बोला, "अरे! तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताया? मैंने तो अपना दिल पेड़ पर रख दिया है। चलो वापस चलते हैं, मैं तुम्हें वहीं से लेकर आता हूँ।"
मगरमच्छ बंदर को वापस किनारे ले आया। बंदर तुरंत पेड़ पर चढ़ गया और बोला, "मूर्ख मगरमच्छ! दिल तो शरीर में होता है। तुमने मेरी दोस्ती का गलत फायदा उठाना चाहा, इसलिए अब हमारी दोस्ती खत्म।"
मगरमच्छ को अपनी गलती का एहसास हुआ, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। बंदर ने उसे सबक सिखा दिया था।
सीख: दूसरों की दोस्ती का गलत फायदा उठाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। चतुराई और सही समय पर सही निर्णय लेने से हर मुश्किल से बचा जा सकता है।